नंगी गर्ल Xxx चुदाई का नजारा मैंने अपने पड़ोस के लड़के से अपनी बहन की चूत चुदाई का देखा. मेरी बहन उसके मोटे लंड पर मर मिटी थी और हर रोज उससे चुदती थी.
दोस्तो, मेरा नाम महेश शर्मा है … इस वक़्त मेरी उम्र 30 साल है.
मैं जो अपनी आपबीती सुनने आया हूँ, यह उस वक़्त से शुरू होती है, जब मैं 19 साल का था.
इस सेक्स कहानी को पढ़ कर आप जानेंगे कि सेक्स ने मेरी हँसती खेलती फैमिली को क्या से क्या बना दिया.
मेरी फैमिली में पापा राजेश शर्मा और मम्मी शीला शर्मा के अलावा मैं और मेरी दीदी पूजा शर्मा हैं.
यह नंगी गर्ल Xxx चुदाई आज से 12 साल पहले की है.
नौकरी के कारण पापा ने कस्बे से सब कुछ बेचकर हैदराबाद में ही बसने का इरादा कर लिया था.
उस वक़्त पापा की उम्र 40 साल और मम्मी की 34 थी.
दीदी अपनी जवानी में कदम रखने को थी और मैं भी शरीर के अंगों के विकास का अर्थ समझने लगा था.
रहने के लिए सस्ता सा मकान कहीं नहीं मिल रहा था.
जैसे तैसे एक सस्ता सा मकान मिल भी रहा था तो वह अन्य मजहब के लोगों की बस्ती में था.
मकान उधर होने के कारण पापा हिचकिचा रहे थे.
अंत में मम्मी की ज़िद पर पापा ने वह मकान ले लिया क्योंकि पापा मम्मी से बेहद प्यार करते थे.
उन्हें क्या मालूम था कि उनका ये फ़ैसला हमारी फैमिली को किस रास्ते ले जा रहा है.
एक हफ्ते के अन्दर ही हम उस मकान में शिफ्ट हो गए और फिर यहां से हमारी बर्बादी की दास्तान शुरू हुई.
पड़ोसी के रूप में हमारे सामने अब्दुल का घर था. वह एक कसाई था और बगल में मस्ज़िद का मौलवी फकरुद्दीन रहता था.
दोनों कुछ ही दिनों में हमसे घुल-मिल गए.
वे दोनों अक्सर ही हमारे घर आने लगे.
शुरू में तो मुझे कुछ खास समझ नहीं आया.
लेकिन ज्यों ज्यों मेरी उम्र बढ़ती गयी, मुझे सब कुछ समझ में आने लगा.
आता भी क्यों नहीं, मेरी मम्मी हैं ही बला की खूबसूरत.
हमारी जाति में जैसे आमतौर पर महिलाएं गोरी चिट्टी और बेहद खूबसूरत होती हैं, मम्मी इसका एक जीता जागता उदाहरण थीं.
मेरी मम्मी का 34-32-38 का गदराया हुआ फिगर बड़ा ही जानलेवा था. सुंदर और सेक्सी शरीर के साथ साथ मम्मी का व्यवहार भी बहुत हँसमुख था और वे स्टाइलिश भी थीं.
मैंने अक्सर अब्दुल और फकरुद्दीन को मम्मी का बदन घूरता पाया था.
मुझे उस वक्त बहुत गुस्सा आता था, जब वे दोनों कोई ना कोई बहाना लेकर मम्मी से बात करने की कोशिश करते.
ख़ासतौर पर फकरुद्दीन मुझे बिल्कुल पसंद नहीं था.
उसकी दाढ़ी मुझे बहुत गंदी लगती थी.
मैंने कई बार मम्मी को इशारे से समझाने की कोशिश भी की, लेकिन मम्मी हंसकर टाल देती थीं.
उस फकरु की दो औलादें थीं.
पहला बशीर, जो मेरे कॉलेज में ही पढ़ता था और दूसरी आयशा, जो मेरी क्लासमेट थी.
अपने वालिद के उलट आयशा बहुत खूबसूरत थी.
मुझे उससे प्यार हो गया था और इस प्यार के कारण बशीर से अच्छी दोस्ती भी हो गयी थी.
आयशा को पटाने के लिए बशीर को पटाना बेहद ज़रूरी भी था.
इस कारण से हमारा एक दूसरे के घर आना जाना शुरू हो गया था.
लेकिन मेरे जहन को झटका तब लगा, जब मैंने बशीर को भी उसके अब्बू के नक्शे कदम पर चलते देखा.
वह कमीना मेरी मम्मी की नहीं, दीदी की आंख-चुदाई में बिज़ी रहता था.
दीदी घर में अक्सर मैक्सी ही पहनती थी … और बशीर टाइट मैक्सी में दीदी के उभारों को घूरता रहता था.
अब तो वह मेरी गैर मौजूदगी में भी घर आने लगा.
मुझे बहुत गुस्सा आया लेकिन सोचा आयशा की खातिर अगर वह दीदी का कुछ दीदार कर लेता है, तो क्या हर्ज़ है?
लेकिन उस दिन मेरा गुस्सा उफान पर आ गया, जब बशीर ने मुझसे कहा- चल महेश, कल मूवी देखने चलते हैं … साथ में पूजा को भी लेते आना. तीनों मिलकर थियेटर चलेंगे!
मन ही मन मैंने उसे गाली देते हुए सोचा कि साले तेरी इतनी हिम्मत, मुझसे ही मेरी बहन के बारे में ऐसा कह रहा है. लेकिन हक़ीकत में मैं कह नहीं सका.
मैंने बात टालने के लिए कहा- छोड़ ना बशीर … पूजा दीदी तैयार नहीं होगी!
बशीर ने हंसकर जेब से तीन टिकटें निकालीं और बोला- ये रहीं एडवांस्ड टिकट्स ईव्निंग शो की … खुद तेरी दीदी ने कराई हैं. पहले वह तेरा टिकट नहीं ले रही थी … फिर बाद में उसे लेना पड़ गया क्योंकि बिना तेरे, तेरी मम्मी उसे थियेटर जाने नहीं देती.
बशीर की बात सुनकर मैं सन्न रह गया.
मुझसे कुछ कहते ही नहीं बना.
शाम में हम तीनों मूवी देखने के लिए निकले.
यह थियेटर थोड़ी ही दूरी पर था और रिक्शे से जाना था.
मुझे दाल में कुछ काला नज़र आ रहा था क्योंकि मेरी दीदी ने आज बहुत मेकअप किया था.
लाल रंग के टाइट सलवार सूट में वह कयामत ढा रही थी.
दीदी में ये बदलाव मुझे अच्छा नहीं लग रहा था.
बहरहाल जाना तो था ही.
हमने एक रिक्शा किया.
रिक्शा एक था और आदमी तीन थे, बशीर ने मुझे सीट पर बैठाया और वह खुद मेरी बगल में बैठ गया.
उसने दीदी को अपनी गोद में बैठा लिया. उसकी इस हिमाकत को देख कर मेरे तनबदन में आग लग गयी लेकिन दीदी के चेहरे पर मस्ती भरी रौनक देखकर मुझे समझ में आ गया कि ये इन दोनों की मिली-जुली करतूत है.
अचानक से हल्के झटके पर दीदी चिल्लाई- बशीर भाईजान, जोर से पकड़िए मुझे … वरना मैं गिर जाऊंगी!
बशीर ने दीदी को अपनी बांहों में जकड़ लिया.
फिर मैंने साफ देखा कि दीदी ने उसकी हथेलियों के लिए जगह दे दी थी.
बशीर के दोनों पंजे दीदी की चूचियों पर फिसल रहे थे. मेरे ही सामने वह मेरी दीदी को अपनी गोद में बैठा कर उसकी चूचियों को मसल रहा था.
यह देखकर मुझे गुस्सा तो आ रहा था लेकिन दीदी के चेहरे पर मस्ती की खुमारी देखकर मेरा गुस्सा मरा जा रहा था.
बहरहाल सिनेमा हॉल पहुंचे तो शो शुरू हो चुका था.
बशीर ने चिप्स का लार्ज वाला पैकेट ले लिया और अंधेरे में हम तीनों अपनी सीट्स पर पहुंच गए.
दीदी बीच में बैठी, मैं और बशीर उसके अगल बगल में बैठ गए.
थोड़ी ही देर में मैंने देखा कि बशीर ने चिप्स का पैकेट खोल कर दीदी की गोद में रख दिया.
दीदी ने मुझसे चिप्स लेने को कहा और फिर हम चिप्स खाते हुए मूवी देखने लगे.
अचानक चिप्स लेने के लिए मैंने हाथ बढ़ाया तो चौंक गया. उधर एक हाथ पहले से मौजूद था, वह चिप्स के पैकेट में नहीं, दीदी की सलवार के अन्दर था.
मैं समझ गया कि चिप्स लेने के बहाने बशीर दीदी की चूत में उंगली कर रहा है.
दीदी बार बार अपनी टांगें खोल और बंद कर रही थी, इससे ज़ाहिर था कि दीदी किस हाल में हैं.
अपने मन में भारी गुस्सा लिए मैं उन दोनों की करतूत देखता रह गया.
घर वापसी में भी बशीर दीदी को अपनी गोद में ही बैठा कर आया.
मैं गुस्से से पागल हो उठा था.
अपनी दीदी को घर छोड़ कर आज मैंने बशीर से निपटने की सोच ली थी.
आनन-फानन में मैं बशीर को कूटने के लिए उसके घर की तरफ चल दिया.
वह घर में अकेला था.
उसे अकेला देखते ही मैं उस पर चीखते हुए झपट पड़ा- कमीने तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी बहन के साथ ऐसा करने की … आज मैं तेरी गांड फाड़ डालूँगा मादरचोद!
बशीर मुझसे लड़ने लगा.
ताक़त के मामले में बशीर मुझसे दोगुना था, लिहाज़ा उसने मुझे फ्लोर पर गिरा दिया और मुझ पर चढ़ गया.
वह चीखा- साले, तेरी बहन खुद रांड है … वह खुद आई थी करवाने, लेकिन तुझे तो मालूम करना था न कि वह क्यों आई थी मेरे पास! तो सुन लौड़े वह मुझसे चुदवाना चाहती है. आज तूने मुझ पर हाथ उठाया तो आज देख मैं कैसे तेरी गांड फाड़ता हूँ.
यह कहते हुए उसने सच में मेरे कपड़े उतार दिए और सच में मेरी गांड में अपना लंड पेल दिया.
मैं दर्द से कराहने लगा था.
अचानक से उसने कहा- देख बे लौड़े … तेरी हां या ना का कोई सवाल ही नहीं है. मैं जानता हूँ कि तू मेरी बहन आयशा को पसंद करता है. अगर तू खुशी खुशी अपनी दीदी से मुझे मिलवाएगा तो आयशा से तेरी शादी करवाने की कोशिश करूँगा, वरना तो तेरी गांड मार मार कर तेरी दीदी से मिलूँगा.
यह सुनकर मेरे आगे अंधेरा छा गया.
मुझे कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था.
उससे गांड मरवाने के बाद से तो मेरी उससे फटने लगी थी.
मैं उसे मना करता तो वह मुझे घोड़ी बना लेता.
अब समझो यह मेरी ड्यूटी हो गई थी कि मैं हर रात मम्मी पापा के सोने के बाद अपनी दीदी को बशीर के कमरे में छोड़ कर बाहर पहरेदारी करूं ताकि कहीं फकरु साहब ना जाग जाएं. बारह बजे के बाद मैं घर आ जाता था और मेरी बहन बशीर के लंड के नीचे मजे लूटती थी.
बशीर रात रात भर मेरी बहन को चोदता था और सुबह घर छोड़ जाता.
मेरी दीदी अपना दिल खोल कर उस पर अपनी जवानी लुटा रही थी.
शुरू शुरू में तो दीदी मुझसे जरा परहेज़ करती थी लेकिन चुदाई के नशे में वह अब एकदम निर्लज़्ज़ हो गयी.
मेरे सामने बशीर से अपनी चूचियों को मसलवाना उसके लिए आम बात हो गयी थी.
मेरे सामने वह पूरी नंगी बशीर की बांहों में लेटी रहती, उसको जरा सी भी शर्म नहीं आती थी.
कुछ दिनों के बाद तो दीदी चुदने से पहले अपनी चूत में क्रीम लगाने के लिए मुझसे ही कहने लगी.
पता नहीं कौन सी क्रीम थी.
वह कहती थी कि इसे लगवाने से चुदने में दर्द बहुत कम होता है. बशीर का लंड बहुत मोटा है न … जब पेलता है तो मुझे बहुत दर्द होता है. इसलिए मैं तुझसे अपनी चूत में ये क्रीम लगवा लेती हूँ.
मैं भी कुछ न कहता और चुपचाप अपनी उंगली में क्रीम लेकर अपनी दीदी की चूत में लगाने लगता.
वह भी दोनों टांगें फैला कर मजे से अपनी चूत में क्रीम लगवाती.
अब यह मेरा हर दिन का रुटीन हो गया था.
दीदी रात भर बशीर के लौड़े से अपनी चूत चुदवाती, कभी सुबह मैं उसे घर वापस लाता, कभी बशीर खुद उसे छोड़ जाता.
रात को नंगी गर्ल Xxx चुदाई होने लगी थी और दिन में मैं उन दोनों बाप बेटे को अपनी मम्मी पर डोरे डालते देखता रहता था.
मेरी मम्मी में इस उम्र में भी हसीनों वाली लचक थी. वे उन्हें अपने पास बुलाती भी थीं और तरसाती भी थीं.
यूं ही वक़्त गुज़रता जा रहा था.
तीन महीने बाद मैं परेशान हो उठा था.
बशीर मुझ पर ध्यान नहीं देता था.
मैं आयशा से मिलने की कोशिश भी नहीं कर पा रहा था.
इधर बशीर ने मेरी दीदी को चोद चोद कर कली से फूल बना दिया था लेकिन मेरे अरमानों की मुरझाई कली उसे दिखाई नहीं देती थी.
दीदी शादीशुदा औरत की तरह हो गयी थी.
कम्बख़्त बशीर ने दीदी की चूचियों को इतना ज्यादा मसला था कि उसकी चूचियां साइज़ में दोगुनी हो गयी थीं. चूतड़ भी मांसल होकर पीछे को उभर आए थे.
ये सब देखकर मुझे खुद पर तरस भी आने लगा था.
मैंने एक दिन बशीर से कह ही दिया कि आयशा से मेरी सैटिंग करवा दे.
जवाब में उसने फिर से वही पुराना दिलासा दे दिया कि हां ज़ल्दी ही करूँगा.
उस बात के दूसरे ही दिन वह हुआ, जिसकी मैंने उम्मीद भी नहीं की थी.
शहर में दंगे हो गए थे.
उस वक्त पापा ऑफिस गए थे.
हम सब घबरा उठे थे क्योंकि हमारी बस्ती विधर्मियों की थी.
भगवान का लाख लाख शुक्र था कि फकरु हमारे घर आ धमका.
वह आते ही मम्मी से बोला- भाभी जान, जल्दी से अपना सामान समेटो और हमारे घर चलो. यहां के लोग बहुत गुस्से में हैं. मार काट मची है. इस वक़्त हमारे घर से महफूज़ कोई जगह नहीं है आपके लिए!
हम तो पहले से डरे हुए थे ही, हमने सामान समेटने में देर नहीं लगाई और फकरु को पापा के ऑफिस से उन्हें लाने के लिए भेजा.
इधर उसके मकान में दाखिल होते ही मेरे दिल में हलचल मच गयी.
सामने से आयशा आ रही थी.
वह सुर्ख लाल सलवार सूट में कयामत लग रही थी.
उसका सलवार सूट इतना टाइट था कि आयशा की मोटी मोटी जांघें अपना फिगर, दिल खोल कर दिख रही थीं.
उसका गोरा चेहरा कांच सा दमक रहा था.
उसकी उठान ली हुई चूचियों को देख कर मैं आह भर उठा.
जबकि मम्मी इस परेशानी में थीं कि सामान कहां रखें. क्योंकि घर में सिर्फ़ 3 कमरे थे.
एक आयशा का, एक बशीर का और एक फकरुद्दीन का!
फकरुद्दीन की बेगम 2 साल पहले ही गुज़र गयी थी.
आखिरकार सामान को बरामदे में रखवा दिया गया और वहीं एक बेड भी लगा दिया गया.
तय यह हुआ कि बशीर और आयशा एक कमरे में रहेंगे. पूजा दीदी और मैं दूसरे में … और बरामदे में मम्मी पापा.
फिर शाम में पापा भी सही वक्त पर घर पहुंच गए.
रात का खाना खाने के बाद हम अपने अपने कमरे की तरफ बढ़ गए.
लेकिन उस वक़्त मुझ पर बिजली गिर पड़ी … जब रात में बशीर मेरे कमरे में आ गया.
मैं और पूजा दीदी बस आंख बंद किए दंगों के बारे में सोच रहे थे.
बशीर आया और पूजा दीदी के ऊपर चढ़ गया.
दीदी की खिलखिलाहट की आवाज़ सुनकर मेरी आंख खुल गयी.
बशीर को देखते ही मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा.
मैं चीखा- यह क्या बेहूदगी है बशीर? रात के इस वक़्त … प्लीज़ जाओ अपने कमरे में … कोई देख लेगा!
बशीर हंसा- क्या करूं महेश, मैं जब तक तेरी दीदी को एक बार चोद नहीं लेता, तब तक मेरा लंड झुकता ही नहीं है. अब तू बस ये बोल कि यहां बैठकर अपनी दीदी की चुदाई देखना चाहता है या बाहर बैठकर फक-फक की आवाज़ सुनना चाहता है?
मैं सिसक उठा- लेकिन मैं सोऊंगा कहां? क्या मैं आयशा के कमरे में चला जाऊं?
मेरी बात सुनकर दीदी की चूचियों पर घूमते बशीर के हाथ रुक गए.
उसने चौंक कर मुझे देखा और फिर अचानक से मेरी दीदी की एक चूची को इतनी जोर से मसल दिया कि दीदी चीख उठी- उईई ईई मम्ममीई.
अब दीदी गुस्से में बोली- जा कहीं भी जा कर गांड मरा, पहले मुझे चुद लेने दे!
मैं अपना सा मुँह लटकाए हुए कमरे से बाहर निकल आया.
इस से आगे की सेक्स कहानी अगले भाग में लिखूँगा.
आपको नंगी गर्ल Xxx चुदाई कहानी अच्छी लग रही है ना?