गाँव की बहू की चूत में लंड की होली- 2

Xxx बहू प्रोन स्टोरी में बहू सुबह-सुबह ससुर से चुद कर अपने कमरे में गयी तो पति ने चोद दिया। उधर ननदोई भी उसकी चूत मारने की फिराक में था। जैसे ही घर के सभी लोग बाहर होली खेलने गए, उसने मौके का फायदा कैसे उठा लिया … स्टोरी में जानें।
दोस्तो, मैं विशू आपके लिए गुंजा की चुदाई प्रोन स्टोरी का दूसरा भाग लेकर आया हूं।

पहले भाग
ससुर ने जवान बहू को पेल कर होली मनाई
में आपने पढ़ा था कि कैसे होली की सुबह गुंजा के ससुर ने उसे बाथरूम में दबोच लिया और फिर जमकर उसकी चूत मारी।

गुंजा की यह पहली जमकर चुदाई थी जिसके बाद वह काफी खुश थी।
फिर वह नहा-धोकर सबको उठाने चली गई।

अब आगे Xxx बहू प्रोन स्टोरी:

गुंजा अपने पति के पास पहुंची और उसको उठाने लगी।
उसका पति रघुवीर उस वक्त गहरी नींद में था।
लेकिन उसका खंजर जैसा लंड तना हुआ था।

गुंजा ने पति को हिलाना चाहा लेकिन वो नहीं उठा।
तब उसने रघुवीर के बदन पर पड़ी रजाई को हटा दिया।

वो उसे उठाने के लिए आवाज लगाने ही वाली थी कि एक चीज को देखकर उसका गला जैसे ठहर सा गया।

पजामे में रघुवीर का लंड तंबू बनाकर तना हुआ था।
ये नजारा देख गुंजा के मुंह और चूत में पानी आने लगा।

उसने धीरे से हाथ ले जाते हुए पति के लंड को पजामे के ऊपर से ही सहलाया।

लंड को छूकर उससे रुका नहीं गया और उसने लंड को पजामा खोलकर बाहर निकाल लिया।

इतने में ही उसके पति की आंख खुल गई।
रघुवीर ने गुंजा का हाथ पकड़ कर उसे अपने ऊपर खींच लिया।
वो उसकी गर्दन को चूमने लगा।

गुंजा अभी कुछ देर पहले ही अपने ससुर से चुदकर आई थी।
मगर अभी भी गुंजा की चूत गीली थी।
पति का खड़ा लंड देख वो फिर से चुदासी हो चुकी थी।

पति ने उसके चूचों को दबाना शुरू कर दिया।
फिर वो उसकी साड़ी को उतारने लगा।

इस बार भी कमरे का दरवाजा खुला ही हुआ था और वो दोनों अपनी ही मस्ती में लगे हुए थे।

रघुवीर ने गुंजा की साड़ी खोल दी और ब्लाउज के ऊपर से चूचों को मसलने लगा।

उसका लंड गुंजा की चूत पर बिना छुए ही धक्के लगा रहा था।
गुंजा फिर से गर्म होने लगी।

अब गुंजा के बदन से साड़ी हट चुकी थी।
पेटीकोट भी नहीं था।
गुंजा केवल पैंटी और ब्रा में थी।

रघुवीर बार-बार उसकी चूत में लौड़े को घुसाने की कोशिश कर रहा था।

बार-बार के प्रयास से आखिरकार उसके लौड़े ने पैंटी की साइड में से रास्ता बना लिया और गुंजा की चूत में जा घुसा।
लौडा़ अंदर जाते ही गुंजा के मुंह से आह्ह … निकल गई।

रघुवीर ने पजामा खोलकर और नीचे कर दिया और गुंजा की चूत में धक्के लगाने लगा।
उसने ठप-ठप की आवाज के साथ बीवी की चुदाई चालू कर दी।

उसी वक्त गुंजा का देवर सारंग वहां से निकल रहा था।
अपनी भाभी की कामुक आवाजें सुनकर उसके कदम वहीं रूम के पास ठिठक गए।

उसने झांक कर देखा तो सुबह-सुबह उसके भैया उसकी भाभी की चूत में लंड पेल रहे थे।
भाभी की चुदाई खुलेआम हो रही थी।

सामने का नजारा देख सारंग का लंड भी पतलून में खड़ा हो गया।
वो वहीं पर लाइव चुदाई देखने लगा।

अंदर आह्ह … अम्म … आह्ह … अम्म … की आवाजें हो रही थीं।

15 मिनट तक लगातार चोदने के बाद रघुवीर ने अपना पानी गुंजा की चूत में छोड़ दिया।
फिर उसी के ऊपर पसर गया।
मियां-बीवी की चुदाई खत्म हुई।

कुछ ही देर में रघुवीर का लंड मुरझाकर गुंजा की चूत से बाहर आ गया।

सारंग अभी भी अपनी भाभी को हवस की नजरों से वहीं खड़ा देख रहा था।

रघुवीर गुंजा के ऊपर से उठा तो सारंग को अब भाभी की चूत साफ दिखाई देने लगी।
उसने देखा कि भाभी की चूत से भैया का वीर्य बाहर बह रहा था।

उसका भी मन हुआ कि अभी जाकर भाभी को चोद दे।
लेकिन वो चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकता था।

वो वहीं पर खड़ा होकर अपने लंड को दबाते हुए भाभी की चूत का नजारा लेता रहा।
गुंजा आज सुबह दूसरी बार चुद चुकी थी।

उसकी तीसरी चुदाई देवर से होने वाली थी जो कि भाभी की चूत को रौंदने के लिए बेहद उत्सुक हो चुका था।

इधर गुंजा उठकर चलने लगी तो सारंग भी हड़बड़ा गया और तेजी से बाथरूम की तरफ दौड़ा।
वो जल्दी से बाथरूम में घुसा और लंड को निकाल कर भाभी को याद करते हुए मुठ मारने लगा।
आज उसने पहली बार भाभी को याद करके मुठ मारी।

गुंजा की चूत इधर फिर से पानी से भर गई थी।
फिर उसने पास ही पड़े कपड़े से अपनी चूत को साफ किया, फिर अपने कपड़े ठीक किए।

वो बाहर जाने लगी तो ध्यान आया कि दरवाजा फिर खुला रह गया.
उसने अपनी बेवकूफी पर सोच फिर से माथे पर हाथ मारा।
फिर उसने दरवाजे के बाहर झांका तो कोई भी नहीं था।

उसे लगा कि चलो किसी ने नहीं देखा। उसे फिर से बाथरूम में जाकर नहाना पड़ा।

फिर उसने नाश्ता बनाया और सबको खाने के लिए बुला लिया।

ससुर आये तो गुंजा की हिम्मत नहीं हो रही थी उनसे नजर मिलाने की।
मुनिलाल ने नाश्ते की प्लेट को गुंजा के हाथ से लेते हुए गले में खराश की आवाज की … और फिर आशिकी भरी नजर से मुस्कराकर मूंछों पर ताव दिया।

गुंजा अपने ससुर की मर्दाना अदा पर शर्मा गई।

मुनिलाल ने नाश्ता किया और प्लेट रसोई में रखने गया।
गुंजा रसोई में ही खड़ी काम कर रही थी।

मुनिलाल ने नाश्ते की प्लेट उसके हाथ में थमाई और पीछे से उसके बदन पर चिपक गया।
उसने बहू के चूचों को दबाया और उठी हुई गांड को भी भींच दिया।
वो बोला- होली फिर से मुबारक हो बहू!

गुंजा हड़बड़ा गई।

मुनिलाल हंसते हुए वहां से निकल आया और सब लोगों के बीच आकर बैठ गया।

कुछ देर के बाद गुंजा भी अपना काम निपटाकर वहां से बाहर आ गई।
वो अपनी ननद की बाजू में आकर बैठ गई।

ननद रानी के पति छगनलाल की नजर भी गुंजा की चूत पर बहुत पहले से थी।

गुंजा भी जानती थी कि ननदोई छगनलाल उसकी चूत के चक्करों में उस पर डोरे डालता रहता है लेकिन कभी वो उसके हाथ नहीं आयी थी।

कई बार छगनलाल ने गुंजा को अकेले में दबोचना चाहा था लेकिन गुंजा निकल भागती थी।
फिर ससुर मुनिलाल ने गुंजा को कहा- बहू, रंग लेकर आओ, आज होली है!

गुंजा गई और सबके लिए रंग लेकर आई।

पहले सभी मर्दों ने एक दूसरे को रंग लगाया।
फिर औरतों को रंग लगाने ही वाले थे कि गांव के अन्य लोग भी होली … होली … करते हुए आने लगे।

उनमें रानी की सहेलियां, और सारंग के दोस्त भी थे।

सबसे पहले मुनिलाल बाहर गए।
उसके बाद बाकी लोग भी बाहर चले गए।

सभी रंग खेलने में मस्त हो गए।

इधर छगनलाल के दिमाग में कुछ चल रहा था।
वहां वो ज्यादा किसी को जानता नहीं था।

इसलिए वो सिर्फ गुंजा को रंग लगाने की फिराक में था।
आकर वो एकदम से गुंजा के सामने खड़ा हो गया।

गुंजा वहां से भाग गई।
वो जाकर घर के अंदर घुस गई।

छगन ने देखा कि सब बाहर खेलने में मस्त थे।

वो चुपके से अंदर जा घुसा, अंदर जाकर गुंजा को ढूंढने लगा।

तभी गुंजा किचन से निकल कर रूम की तरफ भागी।
छगन भी उसके पीछे दौड़ा।

गुंजा फिर वहां से भी निकल कर भागी और घर के आखिरी कोने में जो स्टोर रूम था उसमें सामान के पीछे जा छुपी।
छगन दौड़ता हुआ उस कमरे में गया और अगले ही पल उसने गुंजा को दबोच लिया।

गुंजा को दबोचते हुए कहने लगा- हमसे कब तक भागोगी भागी, आज तो रंग लगाकर ही रहेंगे!
कहते हुए वो गुंजा के चेहरे पर गुलाल मलने लगा।

फिर उसके कंधों से होते हुए उसका हाथ गुंजा के चूचों पर जा पहुंचा।
वो गुंजा की गर्दन को चूमने लगा, दूसरे हाथ से उसके स्तन दबाने लगा।

गुंजा बस ‘नहीं-नहीं’ करते हुए विरोध जता रही थी।

तभी छगन ने अपना हाथ नीचे कर गुंजा की साड़ी को ऊपर उठाते हुए उसकी मदमस्त जांघों को सहलाना शुरू कर दिया।
गुंजा का विरोध अब थोड़ा सा कम हो गया था।

करते-करते छगन ने गुंजा की कोमल चूत को छू लिया।

बिना देरी के छगन ने बीच वाली उंगली गुंजा की चूत में घुसा दी जिससे गुंजा उछल पड़ी।
लेकिन छगन ने गुंजा को दबोच रखा था।

छगन की उंगली गुंजा की चूत में तूफान उठा रही थी।
गुंजा कामुक हो चली थी।

गुंजा ने अब छगन के सामने समर्पण कर दिया था।
छगन ने उसके होंठों को चूसना शुरू किया।
वो एक हाथ से गुंजा के स्तन मसल रहा था तो दूसरे हाथ से गुंजा की चूत कुरेद रहा था।

गुंजा अब कामुक सिसकारियां ले रही थी। वो सुबह से दो बार चुद चुकी थी।
उसकी चूत अब तीसरी बार चुदने के लिए तैयार हो रही थी।

अब छगन ने अपने सारे कपड़े निकाले और गुंजा की साड़ी भी निकाल दी।

घर के लोग सब बाहर रंग खेलने में मस्त थे।
गुंजा अब घागरा चोली में थी।

छगन ने उसकी चोली के हुक खोल कर उसके दो रसीले आमों को आजाद कर दिया।
अब गुंजा सिर्फ घाघरे में रह गयी।
छगन ने उसके घाघरे का नाड़ा पकड़ना चाहा लेकिन गुंजा ने मना किया।

छगन ने उसकी इच्छा का मान रखते हुए नाड़ा छोड़ दिया।
वो घाघरा ऊपर करके खुद नीचे गुंजा की जांघों के बीच बैठ गया, गुंजा के पैर फैलाकर उसने गुंजा की चूत पर अपनी जुबान लगा दी।

गुंजा मचल उठी।
वो आह्ह्ह … स्स्स्स् आह्ह्ह जैसी आवाजें करने लगी।

आज गुंजा खड़े खड़े अपनी चूत चटवा रही थी।
यह एक अजब सा अहसास था गुंजा के लिये।

कुछ देर बाद छगन ने गुंजा को अपने ऊपर लिटा लिया।
अब गुंजा के मुंह के सामने छगन का लंड था।

गुंजा समझ रही थी कि छगन उससे लंड चुसवाना चाहता है लेकिन शर्म के मारे वो लंड को मुंह में नहीं ले रही थी।

इधर छगन लगातार गुंजा की चूत चाटे जा रहा था।
7 से 8 मिनट तक उसने गुंजा की चूत को चाटा।

गुंजा के शरीर मे कंपन हुई और उसके बदन की नस-नस टाईट हो गयी।
तब गुंजा ने छगन के पैरों को पकड़ लिया। गुंजा के नाखून छगन के पैरों में गड़ गये और थर्थराते हुए गुंजा झड़ने लगी।
छगन ने उसकी चूत के रस का अपने मुंह में स्वागत किया और गुंजा के पानी की एक-एक बूंद वो चाट गया।

गुंजा अब ठंडी पड़ गई।
आज से पहले गुंजा कभी एक दिन में इतनी बार नहीं झड़ी होगी।

छगन रुका नहीं, चूत चाटता रहा।
उसने जुबान को अब अंदर तक घुसाकर हिलाना चालू किया।
इससे गुंजा के शरीर में वासना की आग फिर से तेज हो गई।
उसकी फिर से सिसकारियां निकलने लगी।

छगन लाल चालू आदमी था।
उसने चूत की गर्मी को महसूस कर जुबान बाहर निकाली और खुद खड़ा हो गया और गुंजा को भी खड़ा किया।
गुंजा को किसी ब/च्चे की तरह उसने अपनी कमर के ऊपर उठा लिया।

फिर हाथ नीचे करके अपने खड़े लंड को उसने गुंजा की चूत पर सेट किया और आहिस्ता-आहिस्ता उसे अपने लंड पर बिठाने लगा।
ज्यों ज्यों छगन का लंड गुंजा की चूत के अंदर घुस रहा था गुंजा का मुंह खुलता चला जा रहा था।

आखिर एक ठोकर के बाद छगन का पूरा लंड अब गुंजा की चूत ने निगल लिया।
खड़े-खड़े छगन गुंजा को चोदने लगा।
गुंजा छगन से नजरें नहीं मिला रही थी।

गुंजा बस अपनी गर्दन दूसरी ओर करके चुदाई का मजा ले रही थी।

छगन भी उसकी रसीली चूत में अपना लंड पेले जा रहा था और उसके उछलते हुए मम्में अपने सीने पर घिसवा रहा था।

गुंजा छगन की कमर पर लटके हुए चुद रही थी और उसके लंड पर झूल रही थी।

सुबह से यह तीसरी बार था जब गुंजा अपनी चूत खुलवा रही थी।
उसकी चूत ने रसदान भी खूब ही कर लिया था।

10 मिनट तक ननदोई के लंड पर कूदते हुए वो अब थकने लगी थी।
इधर छगन भी गुंजा को उठाकर ठोकते हुए थक गया था।
उसने गुंजा को नीचे उतारा।

फिर उसे घुमा कर घोड़ी बनाया और एक बार अपनी जुबान से उसकी चूत चाटी।

दोनों की चुदाई की मिली-जुली सुगंध और स्वाद उसकी जुबान पर आया।

फिर छगन उठकर खड़ा हुआ और अपने लंड को थूक से सान लिया।
फिर थोड़ा नीचे झुक कर उसने लंड को चूत के मुहाने पर रखा गच् से एक सांस में पूरा लंड गुंजा की चूत की गहराई में उतार दिया।

इस जबरदस्त धक्के से गुंजा की चीख निकल गई।
लेकिन छगन ने उसकी परवाह नहीं की।
उसने गुंजा की चूत में धक्कों की बरसात कर दी।

वो हाथों को गुंजा की चूचियों पर रखे हुए लगातार दबा रहा था, उसके निप्पलों को दो उंगलियों में दबाकर भींच रहा था।

यह दोहरा वार गुंजा ज्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर पाई।
जबरदस्त पेलाई के कारण गुंजा थरथराते हुए झड़ने लगी।
झड़ने से उसकी चूत में और ज्यादा चिकनाई हो गई।
अब छगन का लंड और ज्यादा अच्छे से चलने लगा।

अब छगन ने चूचों को छोड़ा और उसकी पतली कमर को थामकर फुल स्पीड में धक्के लगाने चालू किए।

25 मिनट चली धुआंधार चुदाई का अब अंत करीब आ गया।
छगन का लंड गुंजा की चूत में फूलने लगा।

कुछ और धक्कों में छगन के लंड से एक तेज धार निकली जो सीधे गुंजा की चूत के गर्भद्वार पर निशान लगाकर आई।
जैसे नल से पानी निकलता है वैसे ही छगन के लंड से वीर्य गुंजा की चूत में निकलने लगा।
ननदोई के वीर्य से गुंजा की चूत लबालब भर गई।

छगन भी हैरान था कि उसके लंड से इतना वीर्य कैसे निकल रहा है।
वो तो रोज अपनी पत्नी को दबाकर पेलकर सोता था तो फिर आज ऐसा कैसे हो गया।
यही सोचते हुए उसका लंड मुरझाकर गुंजा की चूत से बाहर निकल आया।

गुंजा ने अपने कपड़े ठीक किए और फिर वहां से भाग गई।
छगन भी कुछ देर के बाद वहां से बाहर आ गया।

घर में अभी कोई नहीं आया था।

गुंजा अब शर्माकर घर से बाहर निकल गई।

लेकिन छगन उस चुदाई को याद करके खटिया में ही पड़ा रहा।
उसके मन की मुराद आज पूरी हो गई थी।

छगन इतना मदहोश था कि उसे याद भी नहीं रहा कि उसने अपने लंड को चुदाई के बाद धोया नहीं है।

उधर गुंजा इस चुदाई को याद करके मन ही मन शर्मा रही थी।
Xxx बहू अपनी हरकतों के बारे में सोच रही थी कि किस मुंह से ससुर और ननदोई के सामने जाएगी।

लेकिन ये तीनों ही चुदाई जब भी वो याद करती, उसकी चूत गीली हो जाती थी।

फिर देखते ही देखते दोपहर हो गई।
सब नहा-धोकर साफ हो लिए।

गुंजा ने सबके लिए खाना बना दिया।
खाना खाकर सब अपने कमरे में गए।

गुंजा की चूत होली पर तीसरी बार खुल चुकी थी।

आपको गुंजा की चुदाई की Xxx बहू प्रोन स्टोरी कैसी लग रही है अपने कमेंट्स में जरूर बताना।
आप ईमेल पर भी मैसेज कर सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *