कॉलेज गर्ल चुदी पड़ोसी अंकल से- 1 (बिंदास ग्रुप)

मेरी हॉट हिंदी सेक्स स्टोरी में पढ़ें कि कॉलेज में मेरी जवानी मुझे चूत चुदाई का मज़ा मांग रही थी. मुझे अपनी पहली चुदाई का मज़ा कैसे और किसके साथ मिला?

आप सभी पाठकों को सोनम का नमस्कार। दोस्तो, मैंने बिंदास ग्रुप के परिचय में आप सभी पाठकों को बताया था कि मैं और मेरी चार सहेलियां मिलकर अपनी जिन्दगी के अनुभव आप लोगों से बांटेंगी.

इन कहानियों में आप सभी को हम पांचों सहेलियों को सेक्स लाइफ और गुप्त बातों के बारे में पता चलेगा. तो दोस्तो, आज से हमारे ग्रुप ने कहानियों की शुरुआत कर दी है. जिन्होंने हमारे ग्रुप के बारे में नहीं पढ़ा है वो अन्तर्वासना पर
5 लड़कियों का बिंदास ग्रुप– परिचय
एक बार जाकर पढ़ लें ताकि नये पाठकों को हमारे ग्रुप और उसके मकसद के बारे में पता लग सके.

हॉट हिंदी सेक्स स्टोरी की शुरूआत करने से पहले मैं आप सभी को अपने बारे में बता देना चाहती हूँ। मेरा नाम सोनम वर्मा है और मैं एक शादीशुदा महिला हूँ। मेरी उम्र 34 वर्ष है. मेरी एक बेटी है 6 साल की और मैं अपनी जिंदगी में काफी खुश हूं।

दोस्तो, मेरा फिगर साइज 36-32-36 है। मेरा जिस्म बिल्कुल गोरा और गदराया हुआ है. मैं शुरू से ही अपने जिस्म का बहुत ख्याल रखती हूं और अपने गुप्तांग के साथ साथ हाथ पैरों के बालों की भी समय समय पर सफाई करती रहती हूं, जिससे मेरा बदन चिकना रहता है और हमेशा ही दमकता रहता है।

मेरे प्यारे दोस्तो, हम सभी की जिंदगी में कोई न कोई राज़ होता है जिसे हम हमेशा अपने तक ही रखते हैं। ऐसा ही एक राज़ मैं आप लोगों के सामने रख रही हूँ शायद आप लोग इसे पसंद करेंगे।

ये बात तब की है जब मैं कॉलेज में पढ़ाई करती थी। हम 5 सहेलियों का एक ग्रुप था और हम लोग सभी साथ में ही रहती थीं। हम लोग आपस में हर प्रकार की बातें किया करती थीं।

हम लोगों को कॉलेज में बिंदास ग्रुप के नाम से जाना जाता था। हमारे ग्रुप में कोई भी लड़का नहीं था, पर इसका मतलब ये नहीं था कि हम लोग लड़कों को पसंद नहीं करती थीं।

लड़कों पर हमारी नज़र हमेशा ही रहती थी और हम अक्सर उनकी बॉडी और उनके लंड के बारे में बातें किया करती थीं. सब की सब जवान हो रही थीं इसलिए चूतों को लंड की प्यास महसूस होने लगी थी.

हम सभी लड़कियां चुदाई के प्रति काफी उत्सुक रहती थीं। हम सभी चुदाई की कहानियां पढ़ने की बहुत ही शौकीन थीं। इसलिए हमारे पास बहुत सी सेक्स कहानियों की किताबें थीं.

सेक्स कहानी की किताबों के अलावा हम नंगी चुदाई की फोटो वाली किताबें भी साथ में रखा करती थीं. सभी लड़कियों के बीच में वो किताब घूमती रहती थी. चूत में घुसे हुए लंड को देख कर हर कोई अपनी चूत को सहलाया करती थी.

इसलिए घर में चुदाई की कहानियां पढ़ना और चूत में उंगली करना हमारे ग्रुप की सभी लड़कियों की आदत में शुमार था. धीरे धीरे हम सब ने किसी न किसी लड़के के साथ रिश्ता बनाया और चुदाई का मज़ा लिया।

मगर हमने कभी अपने कॉलेज के किसी लड़के को अपने करीब भी नहीं आने दिया क्योंकि हम सब ये बात बहुत ही गुप्त रखना चाहती थीं। कॉलेज के लड़कों का ये डर था कि वो हमारी चुदाई की बातें पूरे कॉलेज में फैला सकते थे.

जब हम लोग कॉलेज के द्वितीय वर्ष में थीं तब तक कई लड़कियां किसी न किसी लड़के के साथ संभोग करके चुदाई का मजा ले चुकी थीं मगर कुछ लड़कियां अभी भी अपनी उंगली से ही काम चला रही थीं।

उनमें से एक मैं भी थी जिसके पास अभी ऐसा कोई लड़का नहीं था जिसके साथ मैं चुदाई का मजा ले सकती थी। उस समय मैं 19 साल की थी और जवानी के उस मोड़ पर मेरा बदन चुदाई के लिए आतुर होता जा रहा था।

उस समय मेरा फिगर 30-26-34 का था। मतलब कि मैं काफी कमसिन लड़की थी. मेरे चूचे उस वक्त काफी छोटे से थे। मगर चुदाई की प्यास मेरे बदन को जलाए जा रही थी।

चुदाई की किताबें पढ़ कर मेरे अंदर चुदाई के लिए तरह तरह के सवाल पैदा हो रहे थे। मैं बस अपनी उंगलियों से ही अपनी प्यास बुझाने के लिए मजबूर थी।

मेरे घर पर मेरे मम्मी-पापा, मैं और मेरा छोटा भाई रहते थे। हम लोग एक सरकारी कालोनी में रहते थे और वहाँ ज्यादातर लोग अपने काम से काम रखते थे। हमारी कालोनी में ऐसा कोई लड़का भी नहीं था जिसे मैं थोड़ा भी पसंद करती हों।

दिन बीतने के साथ साथ मेरी प्यास भी बढ़ती जा रही थी. घर वालों से छुपा कर मैं जो कहानियों की किताबें रखती थी उन्हें कभी सोते समय तो कभी टॉयलेट में पढ़ती और फिर उंगली से अपनी कमसिन सी चूत की प्यास बुझाया करती थी।

मैंने अभी तक कभी भी किसी लड़के का लंड अपनी असल जिन्दगी में नहीं देखा था, बस किताब की फ़ोटो में ही उसका दीदार करने को मिला था। मेरी सहेलियां जो लड़कों से चुदाई करवा चुकी थीं वो अपनी बात बता बात कर मुझे और भी ज्यादा उत्तेजित कर दिया करती थी.

हम लड़कियां जब भी साथ होतीं तो किसी न किसी की चुदाई के बारे में बातें करती रहती थीं। जब मैं अपने बिस्तर पर अकेली रहती तो यही सोचती कि अब किसी तरह मैं भी किसी से दोस्ती करूंगी और अपनी बिन चुदी कुंवारी कमसिन चूत की प्यास बुझाऊंगी।

मेरी हालत उस समय ऐसी थी कि कोई भी लड़का बड़ी आसानी से मुझे पटा सकता था और मैं कभी भी चुदाई के लिए मना नहीं करती। मगर जैसे कि मेरी किस्मत में लंड का सुख अभी लिखा ही नहीं था।

मजबूरी ये भी थी कि हम सभी सहेलियों ने ये फैसला लिया था कि कभी भी कॉलेज के लड़कों से दोस्ती नहीं करेंगी, नहीं तो कॉलेज में हम सभी बदनाम भी हो सकते थे।

वक़्त के साथ साथ दिन बीतते गए और हमारे कॉलेज का दूसरा साल समाप्त हो गया। गर्मी की छुट्टियां आ गईं और अब हम लोग घर पर ही रहने लगे। छुट्टियों के दौरान कभी कभी हम सभी सहेलियां आपस में मिल लिया करती थी।

इसी बीच मेरी किस्मत ने पलटी मारी और मेरे साथ वो हुआ जिसके बारे में मैंने कभी सोचा तक नहीं था। उस समय मेरी मम्मी मेरे छोटे भाई को लेकर कुछ दिनों के लिए नाना के यहाँ चली गई थी।

घर पर बस पापा और मैं ही रह गए थे। मैं पापा के लिए खाना बनाती और दिन भर घर पर ही रहती। पापा शाम को ही अपनी ड्यूटी से वापस आते थे। कालोनी में भी मेरा आना-जाना इतना नहीं था क्योंकि हमारी कालोनी में सभी लोग ज्यादातर अपने से ही मतलब रखते थे।

हां मगर हमारे मकान के बगल में जो अंकल का मकान था, हमारी उन अंकल से अक्सर बात हो जाया करती थी. आस पास के घरों में से बस हम लोग बगल वाले अंकल के साथ ही बातचीत किया करते थे।

अंकल अपने कमरे में अकेले ही रहते थे और उनका परिवार उनके गाँव में रहता था। अंकल कभी कभी ही उनसे मिलने गांव भी जाया करते थे। अंकल के घर का आंगन और हमारा आंगन बिल्कुल एक दूसरे से लगा हुआ था। बस एक लोहे की जाली ही बीच में थी जिससे कि एक दूसरे का आंगन साफ साफ दिखता था।

दोस्तो, आप कभी भी किसी के दिल में क्या है ये पता नहीं कर सकते। अगले व्यक्ति के मन में आपके लिए क्या है इसका पता कर पाना बहुत मुश्किल है। वैसा ही मेरे साथ भी हुआ था।

अंकल, जो कि मेरे पापा की उम्र के थे, उनसे मैं काफी घुल-मिल कर बात किया करती थी। जब भी मैं आंगन में होती थी वो जरूर मुझसे कुछ न कुछ बात किया करते थे।

अंकल और मेरे पापा दोनों की ही साथ में शराब पीने की आदत थी। वो दोनों छुट्टी के दिन अंकल के घर पर शराब का मज़ा लिया करते थे। अंकल पापा को शाम के वक्त बुला लेते थे और उनकी पार्टी शरू हो जाती थी.

दोस्तो, मैंने ये कभी नहीं सोचा था कि उनकी नज़र मुझ पर है. मगर ये बात सही थी और अगर उन्होंने मुझसे ये बात न बोली होती तो शायद मैं कभी जान भी नहीं पाती।

हुआ यूं कि मम्मी के नाना के यहाँ जाने के बाद एक रविवार को मेरे पापा और अंकल दोनों की ही छुट्टी थी। मगर किसी जरूरी काम के कारण से मेरे पापा को काम पर बुला लिया गया था।

वो शाम को 4 बजे अपनी ड्यूटी के लिए निकले और वो रात 12 बजे से पहले वापस नहीं आने वाले थे. चूंकि घर पर मैं अकेली थी इसलिए पापा ने जाते हुए अंकल से कह दिया कि ज़रा घर की तरफ ध्यान रखिएगा।

पापा के जाते ही जैसे मुझे आजादी मिल गई. मैंने घर के सारे दरवाजे खिड़कियां बंद कीं और छुपाई हुई सेक्स कहानियों की किताब निकाल कर पढ़ने लगी।

कहानी पढ़ते हुए मुझे काफी समय बीत गया. मैंने समय देखा तो शाम के 7 बज चुके थे और बाहर अंधेरा छा गया था। उस वक्त तक चुदाई की इतनी कहानी पढ़ने से मैं काफी गर्म हो गई थी।

बिस्तर पर लेटे हुए मैं कहानी पढ़ती जा रही थी और अपनी चूत में उंगली डाल कर हल्के हल्के से सहला रही थी। तभी अचानक से घर के दरवाजे की घंटी बजी।

मैंने जैसे-तैसे किताब छुपाई और हांफते हुए दरवाजे तक पहुँची। मुझे लगा कि जरूर पापा आ गए होंगे। मगर जैसे ही मैंने दरवाजा खोला तो मैं गलत साबित हुई।
दरवाजे पर सामने अंकल खड़े हुए थे।

उन्होंने पूछा- क्या कर रही थी सोनम? बहुत देर से दिखाई नहीं दी, तो मैं जानने आ गया।
मैं- कुछ नहीं अंकल, बस अंदर ही लेटी हुई थी।

मेरे बदन से निकल रहा पसीना और मेरी हाँफती हुई सांसें बहुत कुछ कह रही थीं जिसे शायद अंकल भाँप चुके थे। वो मेरे बगल से गुजरते हुए अंदर आकर बैठ गए।

उनके मुंह से शराब की गंध आ रही थी जिसका मुझे अहसास हो गया था. मैं समझ गयी थी कि आज पापा घर पर नहीं हैं तो अंकल अकेले ही पीकर आये हैं. वो सामने सोफे पर बैठे थे.

वो पूछने लगे- क्या बात है बेटा, इतनी हांफ क्यों रही हो? कूलर भी चल रहा है और फिर भी इतना पसीना?
मैं पसीना पोंछते हुए लड़खड़ाती ज़बान से बोली- कुछ नहीं अंकल … ब..अअ..स ऐसे ही, कुछ नहीं।

मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि क्या जवाब दूं?
वो फिर हल्का सा मुस्कराये और उन्होंने अपनी गर्दन नीचे कर ली. उनकी मुस्कराहट से मुझे समझ में आ गया था कि वो शायद मेरी हालत समझ चुके हैं क्योंकि वो मेरे पापा की उम्र के थे और इन सब चीजों से गुजरे हुए थे.

फिर वो बस इतना बोले- जाओ, चाय बनाओ।
मैं तुरंत ही किचन में गई और चाय बनाने लगी।
वापस आकर उनको चाय दी और हम दोनों चाय पीने लगे।

चाय पीने के बाद उन्होंने मुझे अपने बगल में बैठने के लिए बोला और मैं उनके बगल में बैठ गई। उसके बाद उन्होंने मुझसे जो कहा उसकी उम्मीद कभी नहीं की थी मैंने।
उन्होनें मेरा हाथ पकड़ लिया और मैं सहम सी गयी.

मेरा हाथ पकड़ कर वो बोले- सोनम मैं बहुत दिनों से तुमसे कुछ कहना चाहता था, मगर न ही वैसा समय मिल पा रहा था और मेरी हिम्मत भी नहीं हो रही थी।

मैं- जी बोलिये न अंकल, क्या बात है?
अंकल- सोनम, मैं तुमको पसंद करता हूँ।
ये सुनकर मैंने तुरंत ही अपना हाथ छुड़ा लिया और बोली- ये क्या बोल रहे हो आप?

अंकल- जो दिल में है वही बोल रहा हूँ, बस तुमको बताने की कब से सोच रहा था मगर हिम्मत ही नहीं हो रही थी।
मैं- नहीं अंकल, ये सब गलत है. मैं आपके लिए ऐसा कभी नहीं सोच सकती, आप तो मेरे पापा जैसे हो।

वो मेरे हाथ पर हाथ रख कर बोले- कोई बात नहीं सोनम, मैं समझ सकता हूं कि ये तुम्हारे लिये बहुत नया है, मगर तुम अपना जवाब सोच समझ कर देना। जो भी जवाब हो मुझे बता जरूर देना। मैं तुमको बहुत चाहने लगा हूँ।

इतना बोल कर वो उठे और फिर उसके बाद वो चले गए। मेरी हालत ऐसी थी कि काटो तो खून नहीं। सारी रात बस उनकी बातें याद करती रही। मैं ये सब बात घर में भी नहीं बता सकती थी। बस सोच रही थी कि करूं तो क्या करूँ?

इसलिए मैंने इसके बारे में अपनी सहेलियों से सलाह लेने के लिए सोची।
फिर दो दिन बाद हम सब सहेलियां मिलीं। उनसे मैंने सब बातें साफ साफ बताईं। पहले तो उन कमीनी लड़कियों ने मेरा खूब मजाक उड़ाया कि इतने बड़े आदमी को तू ही मिली थी?

उसके बाद सभी ने इसे गंभीरता से लिया. सबने मिल कर यही बात कही कि ये सोनम के लिये बहुत अच्छा रहेगा. वो सब कहने लगीं कि वो अंकल तुझे किसी और लड़के की अपेक्षा अधिक मज़ा देगा और किसी को ये बात भी नहीं बताएगा क्योंकि वो खुद ये बात गुप्त रखेगा।

सारी चर्चा होने के बाद सब की सहमति यही बनी कि मुझे अंकल को हां कर देना चाहिए। बाकी आखिरी फैसला मेरा ही होना था। वहाँ से आने के बाद मैंने बहुत सोचा कि क्या किया जाये? मेरी सारी रात ऐसे ही उस बात के बारे में सोचते हुए करवट बदलते बदलते ही निकल गयी.

दोस्तो, शायद मेरी जवानी की भड़कती हुई वासना ने मुझे अंकल को हां करने के लिए तैयार कर दिया था। फिर उसके दो दिन के बाद मैंने एक कागज़ पर लिख कर उनको दे दिया।

मेरा जवाब पढ़ कर वो बहुत खुश हुए और उन्होंने भी एक कागज पर लिख कर मुझे इसके लिए धन्यवाद दिया.
न्होंने जवाब में लिखा था कि वो मेरे साथ दो दिन का वक्त बिताना चाहते हैं और इसके लिए मैंने दो दिन की छुट्टी भी ले ली. वो पापा के ड्यूटी जाने के बाद मिलने की बात बोल रहे थे.

उनका ये जवाब पढ़ कर मैं समझ गई कि मेरी पहली चुदाई का इंतजार अब खत्म होने वाला है। मैं अंकल के लंड के बारे में सोचने लगी थी क्योंकि मैंने अभी तक किसी भी मर्द के लंड के दर्शन अपनी आंखों के सामने नहीं किये थे.

अब तो दो दिन का समय काटना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था। मैं उस समय काफी उत्साहित थी। बदन में एक अजीब सी सिरहन पैदा होने लगी थी। बस किसी तरह ये दो दिन का वक्त और काटना था मुझे।

कहानी के अगले भाग में आप पढ़ेंगे कि जब अंकल से मैं मिली तो मेरा हाल कैसा हुआ और हमारे बीच में कैसे शुरूआत हुई और चुदाई का ये खेल शुरू कैसे हुआ?

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